किसान है क्रोध-हिंदी कविता

hindi poem

निंदा की नज़र
तेज है
इच्छा के विरुद्ध भिनभिना रही हैं
बाज़ार की मक्खियाँ|

अभिमान की आवाज़ है
एक दिन स्पर्द्धा के साथ
चरित्र चखती है|

इमली और इमरती का स्वाद
द्वेष के दुकान पर
और घृणा के घड़े से पीती है पानी|

गर्व के गिलास में
ईर्ष्या अपने
इब्न के लिए लेकर खड़ी है
राजनीति का रस|

प्रतिद्वन्द्विता के पथ पर
कुढ़न की खेती का
किसान है क्रोध|


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इस लेख के भीतर व्यक्त की गई राय लेखक की व्यक्तिगत राय है और इस लेख का उद्देश्य किसी की भावना को ठेस पहुंचाना नहीं है।

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