ईर्ष्या की खेती-हिंदी कविता

Hindi poem

ईर्ष्या की खेती|

मिट्टी के मिठास को सोख
जिद के ज़मीन पर
उगी है
इच्छाओं के ईख|


खेत में
चुपचाप चेफा छिल रही है
चरित्र
और चुह रही है
ईर्ष्या|


छिलके पर  
मक्खियाँ भिनभिना रही हैं
और द्वेष देख रहा है
मचान से दूर
बहुत दूर
चरती हुई निंदा की नीलगाय |


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इस लेख के भीतर व्यक्त की गई राय लेखक की व्यक्तिगत राय है और इस लेख का उद्देश्य किसी की भावना को ठेस पहुंचाना नहीं है।

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