स्वाभिमान की रोटी – हिंदी कविता
स्वाभिमान की रोटी | पैरो में बेड़िया है,कुछ मजबूरिया है,दिल के दर्द को समेट लिया मैंने,अपने आप को बंद कर लिया मैंने| भूखे पेट, मेले में भटकता हू,बिक जाये कुछ सामान,आश लिए, हर पल, हर नज़र को देखता हू। यू ही बिखेरा हू,अपनी सामान को,किसी अलमीरा में सजा कर नहीं,रोड किनारे, फटे गमछे पर रखा …