मंदी-प्रभाव -हिंदी कविता

hindi poem-हिंदी कविता

मंदी-प्रभाव -हिंदी कविता

महगाई की बड़ी आग में ,मंदी ने भी ली अंगड़ाई |
टूटे सपने घटती आय, जनता रोती हाय हाय |

स्कूलों के सुंदर सपने ,बड़ी फीस ने नींद हटाई |
खर्चो के बड़ते बोझ से , दिल धड़कन बुझती जाय |

रोजेगार के घटते अवसर , देश फेली खूब बेकारी |
नेता चुप है , जनता चुप है, गुमसुम पड़ती देश की आय
उधोगों की घटती काया , निर्यात की बुझती छाया |

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आशाओ के टिमटिम तारे , मन में छोटे दीप जलाए |
मित्तल घटता ,टाटा घटता , शेयर बाजार में मंदी आई |
भ्रष्टाचारी के बुरे कर्म ने देश के शान मे दाग लगाए |

हम, भारत के मेहनतकश हैं , खूब लड़ा हैं खूब लड़ेंगे |
मंदी के सुरसा मुख को , चतुराई से दूर हटाये |
खर्च घटाए , उत्पादन बड़ाएँ,व्यर्थ व्यय पर रोक लगाए |
नेता सोचे , जनता सोचे ,मंदी की लौ बुझती जाय |

मंदी-प्रभाव -हिंदी कविता

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